लेखनी कहानी -16-Apr-2024
नवरात्र और मांँ दुर्गा
क्वार महीना, शुक्ल पक्ष, तिथि प्रथमा से नवमी ऐ भक्त!! मांँ दुर्गा हैं पूजी जातीं, भक्त हो जाते विरक्त। उबला चना,पूरी हलवा, मांँ के मन अति भावे। पूरा जग कर जोर के, बस अंबे -अंबे गावे। पश्चिम बंगाल शक्ति पूजता, शक्ति रूप हैं माता। इनकी महिमा जन-जन जाने, पूरा जग इनके गुण गाता। बंगाल का दुर्गा पूजा , विश्व में है विख्यात। दिव्य ज्योति देवी की जलाकर, कन्या- लांगुरिया को जिमात। बात पुरानी बड़ी ऐ भक्तों ! दुर्गा नाम का राक्षस। आतंक ऐसा था फैलाया, तीनों लोक था संतप्त। जगजननी को सबने पुकारा, अंबे -अंबे का जयकारा। भक्तों की सुन करुण पुकार, भगवान शक्तियांँ लीं अवतार। दूर्गा, दुर्गसेनी नाम था उनका, दुर्गम संहार काम था जिनका। दुर्गम गया तो आ गई शांति, भक्त जनों की बढ़ गई कांति। मांँ दुर्गा तब नाम पड़ा था, भक्तों का सम्मान बढ़ा था। माँ महिमा का जग हुआ कायल, कोई भक्त हुआ ना घायल। हिंदू शास्त्र हैं वर्णन करता , मांँ दुर्गा के नौ रूपों का। महाकाली ,महालक्ष्मी, चामुंडा, योगमाया, शाकुंभरी, रक्तदंतिका। मांँ का भरोसा मांँ का आस, बस मांँ पर ही था विश्वास। मधु- कैटभ, महिषासुर,धूम्राक्ष, शुंभ- निशुंभ आदि दैत्य साक्षात। दैत्यों का मांँ मर्दन कर दीं। शांत जगत का सर्जन कर दीं। दुर्गा देवी , भ्रामरी, चंडिका, दैत्य संहारी बनीं वंदिता। घोर अनाचार का नाश हुआ था, एक नया प्रकाश हुआ था। मांँ महिमा की अमृत वर्षा से, नए युग का आभास हुआ था। बड़ी ही दीनदयालु मांँ हैं, बिन मांँगे सब कुछ दे देतीं। सच्चे मन से इन्हें पुकारो, खाली झोली हैं भर देतीं।